हर व्यक्ति की अपनी भाषा, अपनी संस्कृति और अच्छा जीवन जीने का अपना अनूठा तरीका होता है। पर सात चीजें ऐसी हैं जिनका पालन हम सभी को करना चाहिए, भले ही हम जो भी हों या हम जहां से भी हों। इन सात चीजों के बिना हमारे लिए सामंजस्य में रहना असंभव है।
ये सात चीजें सभी लोकों के स्वामी द्वारा संपूर्ण मानवता के पूर्वजों को बताई गई थीं। यही कारण है कि ये नियम सभी युगों, स्थानों और लोगों के लिए सार्वभौमिक हैं: मनुष्यों द्वारा बनाए गए नियम-कायदे परिस्थितियों के अनुसार बदल सकते हैं। पर सर्वोच्च ईश्वर द्वारा बनाए गए नियम-कायदे शाश्वत और अपरिवर्तनशील हैं क्योंकि वह भी शाश्वत और अपरिवर्तनशील है।
आज हम मानवजाति के एक नए युग की कगार पर हैं, एक ऐसा समय जब अंततः हम शांति के साथ मिलकर रहेंगे और पूरा विश्व दिव्य बुद्धिमत्ता से भर जाएगा। इन बुनियादी नियमों का पालन करने वाले लोगों का उस विश्व में हिस्सा होगा क्योंकि आखिरकार उन्होंने इसे संभव करने में भाग लिया था।
हालांकि पवित्र यहूदी ग्रंथों में ये शिक्षाएं लिखी हुई थीं पर कई सदियों तक यहूदी उनके बारे में उन लोगों से कुछ नहीं कह सके जिनके बीच वे रहते थे। पर हाल के समय में, धन्य स्मृति रबी मेनाकेम एम. शनेयरसन, जो 20वीं सदी में यहूदी लोगों के सबसे महत्वपूर्ण रबी हैं, इन्होने यहूदियों को इन शिक्षाओं को प्रचारित करने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि यह विश्व शांति व बुद्धिमत्ता के उस युग के लिए तैयार हो सके जिसकी ओर वह तेजी से बढ़ रहा है।
ईश्वर प्रत्येक मनुष्य से जो सात चीजें चाहता है वे यहां उसी रूप में दी जा रही हैं जिस रूप में वे प्राचीन यहूदी ग्रंथों में वर्णित हैं:
- ईश्वर के एकत्व को किसी भी प्रकार से कलुषित न करो।
यह स्वीकारो कि केवल एक ईश्वर है जो हमारे कर्मों का ध्यान रखता है और जो चाहता है कि हम उसके विश्व का ध्यान रखें। - अपने रचयिता को कोसो मत।
आप चाहे कितने भी क्रोधित क्यों न हो, अपने क्रोध को अपने रचयिता के विरुद्ध शब्दों के रूप में बाहर न निकालो। - हत्या न करो।
मानव जीवन का मूल्य मापा नहीं जा सकता है। मात्र एक मनुष्य जीवन को नष्ट करना संपूर्ण विश्व को नष्ट करने के समान है - क्योंकि उस व्यक्ति के लिए विश्व का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। इसका यह अर्थ भी निकलता है कि मात्र एक मनुष्य जीवन को संधारित करने से आप पूरे ब्रह्मांड को संधारित कर रहे हैं। - जीवित पशु के अंग को न खाओ।
ईश्वर के सभी प्राणियों के जीवन का सम्मान करो। चूंकि हम बुद्धिमान प्राणी हैं, अतः हम पर अन्य प्राणियों को अनुचित दर्द न पहुंचाने का दायित्व है। - चोरी न करो।
आपको इस विश्व में जो भी लाभ मिलें, सुनिश्चित करो कि उनमें से कोई भी किसी अन्य के साथ अन्याय होने की कीमत पर न हों। - मानव कामेच्छा को सही मार्ग पर ले जाओ और सदुपयोग करो।
अनाचार. व्याभिचार, बलात्कार और समलैंगिक संबंध वर्जित हैं। परिवार, मानव समाज की आधारभूत इकाई है। पपपति-पत्नी का मिलन जीवन का स्रोत है और काम-क्रिया से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है। फिर भी निरंकुश या दुरुपयोग होने पर वही कार्य सर्वाधिक प्रदूषक और विनाशकारी हो सकता है। - न्यायालय स्थापित करो और हमारी दुनिया में न्याय सुनिश्चित करो।
न्याय के हर छोटे से छोटे कार्य के साथ, हम अपनी दुनिया में सामंजस्यता बहाल कर रहे हैं और उसे ईश्वरीय व्यवस्थाओं के साथ समकालिक बना रहे हैं। यही कारण है कि अपने देश के स्थायित्व और सामंजस्य के लिए हमें हमारी सरकार द्वारा स्थापित कानूनों का पालन करना चाहिए।
ये सात सिद्धांत सामान्य सिद्धांत हैं। इनमें से कई अन्य शिक्षाएं निकलती हैं जो न्याय पसंद मानव मस्तिष्क के सहज ज्ञान से उत्पन्न हैं। इनमें परोपकार करने की प्रथा एवं दयालुता के कार्य, माता-पिता को आदर व सम्मान देना, ईश्वर की प्रार्थना करना और उसकी बुद्धि एवं महानता पर चिंतन-मनन करना शामिल हैं। इसका यह अर्थ भी है कि हम पर विश्वास करके जो विशाल सृष्टि हमारी रखवाली में सौंपी गई है हम उसके प्रति लापरवाही से व्यवहार न करें।
इन सिद्धांतों और नियम-कायदों के पालन के लिए किसी को भी मतांतरण करने या किसी चर्च विशेष से जुड़ने की आवश्यकता नहीं है। पर उनका पालन करना महत्वपूर्ण है, सिर्फ इसलिए नहीं कि वे बुद्धिमानीपूर्ण और अच्छे नियम-कानून हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि सर्वोच्च ईश्वर हम सभी से यही चाहता है। जो भी व्यक्ति इस कारण से इन बुनियादी नियमों का पालन करता है, उसे नेक व्यक्ति माना जाता है और इस विश्व को छोड़ कर जाने पर शाश्वत जीवन पाता है, भले ही वह किसी भी नस्ल, राष्ट्रीयता या संस्कृति का हो।
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