यहूदियों के जीवन की हर अवस्था, हर हफ़्ता, हर दिन और दिन की हर गतिविधि, अर्थ से भरी हुई होती है। वह अर्थ यहूदी धर्म की व्यावहारिक शिक्षाओं से मिला है जिन्हें हलाख़ा कहते हैं, जिसका अर्थ “मार्ग” होता है। कोई यहूदी जिस प्रकार से व्यापार करता है, जिस प्रकार भोजन खाता है, जिस प्रकार अपने परिवार का पालन-पोषण करता है, जिस प्रकार विश्राम करता है और जिस प्रकार उठ खड़ा होता है — हर चीज का एक उद्देश्य होता है।
नीचे यहूदियों की ऐसी कुछ प्रथाएं दी गई हैं जो आसानी से ज़ाहिर होती हैं। हर यहूदी की इन्हें व अन्य प्रथाओं को कायम रखने की जिम्मेदारी है। बहरहाल, जो यहूदी इनमें से किसी का भी पालन नहीं करता, वह भी इब्राहीम, आइज़ेक और याकूब की संतान ही है, और करार का सदस्य है।
शिक्षा
यहूदियों ने सबसे पहले अनिवार्य सार्वजनिक शिक्षा लागू की थी। यहूदियों के लिए अपने बच्चों को तोरा की संपूर्ण शिक्षा देना और एक पेशा सिखाना आवश्यक है। वयस्कों के लिए प्रतिदिन तोरा का अध्ययन करना आवश्यक है, कम-से-कम उन्हें इसे थोड़ा सुबह और थोड़ा रात में पढ़ना चाहिए।
परोपकार
एक यहूदी के लिए परोपकार बस एक पुण्य कार्य नहीं है, बल्कि एक नैतिक दायित्व है। यहूदियों के लिए अपनी आय का कम-से-कम 10% परोपकारी कार्यों में देना अपेक्षित है। जरूरतमंदों की मदद करते समय, उनकी गरिमा बनाए रखने का ध्यान रखा जाना आवश्यक है। परोपकार का सर्वोच्च रूप किसी को अपनी आजीविका स्वयं अर्जित करने के साधन प्रदान करना है।
कोशर (यहूदी विधि-सम्मत) भोजन
सुअर का माँस, झींगा, झींगा मछली और कई अन्य खाद्य पदार्थ वर्जित हैं। माँस के लिए पशु का वध निर्धारित, मानवीय ढंग से किया जाना चाहिए और पशु को रोग-मुक्त होना चाहिए। जो भी प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ हैं उनका पर्यवेक्षण करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके घटक कोशर (यहूदी विधि-सम्मत) हों।
व्यापार में सत्यनिष्ठा
कठिन परिश्रम, वाणिज्य और समाज को लाभ पहुंचाने वाले पेशे को मान दिया जाता है। धोखेबाजी से वस्तुएं या धन प्राप्त करना सख़्त रूप से वर्जित है और यहूदी के लिए अपने वचन पर कायम रहना आवश्यक है। कर्मचारियों के साथ उचित व गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए।
शब्बात और पवित्र दिन
शुक्रवार को सूर्यास्त से लेकर शनिवार की रात तक की अवधि को शब्बात कहते हैं, जिसका मतलब होता है विश्राम, इसलिए इस अवधि में यहूदी कोई कार्य नहीं करते हैं। आग जलाना वर्जित है, बिजली को भी समान माना गया है - अर्थात लाइटों को ऑन छोड़ देना चाहिए या टाइमर पर डाल देना चाहिए और सभी इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को अलग रख देना चाहिए। जीवन को संकट में डालने वाली परिस्थितियां इसकी अपवाद हैं। यह समय परिवार व समुदाय के साथ गुजारने, प्रार्थना करने, अध्ययन करने और विश्राम करने के लिए है। शब्बात हमें याद दिलाता है कि हम स्वतंत्र लोग हैं और यह कि यह विश्व ईश्वर की रचना है।
वेअन्यपवित्रदिनजिनपरयहूदियोंकेलिएकार्यकरनावर्जितहै:
रोश-हाश्शाना- यहूदी नव वर्ष। दो दिनों तक चलता है।
योमकिप्पूर- प्रायश्चित का दिन। व्रत का दिन, वर्ष का सबसे पवित्र दिन।
सुक्कोत- यहूदियों के मिस्र छोड़कर निकलने पर ईश्वर द्वारा उनकी रक्षा किए जाने की याद में मनाया जाने वाला और इसराइल में फसल पकने का उत्सव मनाने वाला एक पर्व। इसराइल में आठ दिन और इसराइल के बाहर नौ दिनों तक चलता है। यदि अत्यावश्यकता हो तो बीच के पाँच दिनों (इसराइल में छः दिनों) पर कार्य करने की अनुमति है।
फसह- मिस्र में दासता से मुक्ति की याद में और इसराइल में वसंत की खुशी मनाने वाला एक पर्व। यह इसराइल में सात दिन और इसराइल के बाहर आठ दिनों तक चलता है। यदि अत्यावश्यकता हो तो बीच के चार दिन (इसराइल में पाँच दिन) कार्य करने की अनुमति है।
शवुओत- तोरा को और इसराइल में पहली फसलों का जश्न को मनाने वाला एक पर्व। इसराइल में एक दिन और इसराइल के बाहर दो दिन।
वेअन्यपवित्रदिनजिनपरकार्यपूरीतरहवर्जितनहींहै:
हनुका: प्राचीन सीरियाई यूनानियों के धार्मिक उत्पीड़न पर यहूदियों की विजय का जश्न जो आठ दिनों तक चलता है। कार्य करने की अनुमति है और रोज़ाना शाम को मोमबत्तियां जलाई जाती हैं।
पूरीम: एक प्राचीन पारसी राजा की राजाज्ञा से यहूदी लोगों की चमत्कारिक मुक्ति का जश्न। केवल अत्यावश्यक मामलों में कार्य करने की अनुमति है।
तीशाबआव: बेबीलोनियों द्वारा और बाद में रोमनों द्वारा यरूशलेम और पवित्र मंदिर के विध्वंस का मातम मनाने के लिए यहूदी लोग उपवास रखते हैं। केवल अत्यावश्यक मामलों में कार्य करने की अनुमति है।
कई अन्य पवित्र दिन भी हैं। आप उनकी एक अधिक व्यापक सूची यहूदी पवित्र दिन औरपर्व पर पा सकते हैं।
खतना
जन्म के आठ दिनों बाद सभी लड़कों का खतना किया जाता है, बशर्ते उनका स्वास्थ्य इसकी अनुमति देता हो। इसे इब्राहीम का करार कहा जाता है। इस अवसर पर प्रायः जश्न मनाया जाता है।
पुत्र व पुत्री ईश्वराज्ञा (बार व बात मिट्स्वा)
यहूदी लड़कियों को 12 वर्ष की हो जाने पर अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है। यहूदी लड़कों को 13 वर्ष का हो जाने पर उत्तरदायी ठहराया जाता है। बच्चे की आयु इतनी हो जाने पर प्रायः जश्न मनाया जाता है।
तेफ़िलिन
यहूदी पुरुष रोज़ाना एक बार (शब्बात और पर्वों को छोड़कर), प्रायः सुबह की प्रार्थना में अपनी बांह और सिर पर काले चमड़े के बक्से बांधते हैं जिन्हें तेफ़िलिनकहा जाता है। इन बक्सों में हाथ से लिखी पर्चियां होती हैं जिन पर मिस्र से हमारी मुक्ति और ईश्वर के एकत्व की घोषणा करने वाली आयतें लिखी होती हैं।
प्रार्थना
यहूदी प्रतिदिन तीन बार प्रार्थना करते हैं। वे यरूशलेम की ओर मुख करके प्रार्थनाएं बोलते हैं जिन्हें अधिकांशतः राजा डेविड के भजनों से लिया गया है। वे ईश्वर की अच्छाई के लिए धन्यवाद देते हैं, और अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए, सभी यहूदियों के तोरा के पालन के लिए और इसराइल लौटने के लिए तथा शांति का अनुरोध करते हैं। इसके अलावा, यहूदी हर रोज कई बार बराका बोलते हैं। (बराका सृष्टिकर्ता ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उसकी प्रशंसा में बोले जाने वाले शब्द हैं।) कुछ भी खाने से पहले व बाद में, ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए एक बराका बोली जाती है। सुगंध सूंघने पर, इंद्रधनुष देखने पर, कोई नयनाभिराम दृश्य देखने पर, बिजली की गर्जना सुनने और उसे चमकता देखने पर, किसी बुद्धिमान व्यक्ति को देखने पर एवं अन्य कई अवसरों पर भी बराका बोली जाती हैं।
विवाह
विवाह, नर व मादा आत्माओं के बीच का सबसे पवित्र आध्यात्मिक संबंध है, और यदि साथी यहूदी ही जन्मा है तो भी और यदि वह हलाख़ा(यहूदी कानून) के अनुसार मतांतरित होकर यहूदी बन गया है तो भी, समान रूप से वैध है।
विवाह को एक पवित्र संस्था, दो आत्माओं का परस्पर प्रेम व सम्मान से पूर्ण एक बंधन माना जाता है। परिवार का पालन-पोषण एक पवित्र कार्य है, और बच्चों को बहुत मान दिया जाता है।
मतांतरण
यहूदी बनना संभव है, पर ऐसा हलाख़ागलाखा के अनुसार किया जाना चाहिए। मतांतरण करने वाले व्यक्ति को स्वयं वे सारे नियम-कायदे स्वीकार करने होते हैं जिन्हें यहूदियों द्वारा कायम रखा जाना आवश्यक किया गया है। ऐसा स्वीकृत यहूदी विशेषज्ञोंके न्यायाधिकरण के समक्ष किया जाता है। पुरुषों को अपना खतना करवाना होता है। मतांतरित व्यक्ति को एक यहूदी एवं सभी प्रकार से इब्राहीम की संतान माना जाता है, और वह यहूदी जन्मे व्यक्ति से विवाह कर सकता है।
यहूदी अन्य लोगों को मतांतरित करने का प्रयास नहीं करते हैं। वे तो मतांतरण में रुचि दिखाने वालों को हतोत्साहित भी करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में एक लक्ष्य विशेष के साथ पैदा हुआ है और ईश्वर ने आपको जो लक्ष्य दिया है उसे पूरा करने के लिए यहूदी होना आवश्यक नहीं है।
दफ़नाना
चूंकि जीवन का हर क्षण ईश्वर का दिया उपहार है, इसलिए प्रत्येक मनुष्य के लिए इच्छा-मृत्यु वर्जित है। शरीर को पवित्र माना जाता है, क्योंकि उसमें आत्मा का वास है और आत्मा, ईश्वर की साँस है। इसे सम्मान के साथ दफ़नाया जाना आवश्यक है न कि जलाना या किसी भी प्रकार से अपवित्र करना। यहूदियों का विश्वास है कि भविष्य में एक समय पर सभी मुर्दों को पुनर्जीवित कर दिया जाएगा, तब दुष्टता और मृत्यु गायब हो जाएंगे और हमने इस दुनिया में जो कुछ भी अच्छा और सही किया है, वह उस दुनिया में भी कायम रहेगा।
बाकी सभी का क्या?
ऊपर बताई गईं प्रथाओं में से कुछ केवल यहूदियों में मिलती हैं जो ईश्वर के साथ उनके करार का हिस्सा हैं। अन्य प्रथाएं, जैसे सत्यनिष्ठा, शिक्षा एवं प्रार्थना सार्वभौमिक हैं।
ईश्वर ने विविधताओं से भरा विश्व बनाया है, वह अपनी सभी रचनाओं से प्रेम करता है, और उसने संपूर्ण मानवता के लिए बुनियादी नियम दिए हैं (देखें वे सात चीजें जो ईश्वर हर मनुष्य से चाहता है)। प्रत्येक संस्कृति द्वारा अपने तरीके से इन नियमों के पालन के माध्यम से, हम सभी हमसे भिन्न लोगों के साथ लोगसामंजस्य के साथ रहते हुए अपने-अपने परिवारों, लोगों और संस्कृतियों पर गर्व कर सकते हैं। पूरा विश्व एक शानदार स्वर-समता के रूप में एकसाथ गा सकता है।
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